🌹चार लघु स्तंभ लेख - 1🌹
( सारनाथ )
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मूल-लेख (लिप्यांतरण):-
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१ देवा ' . . . (देवानंपिय)
२ एल् . . . . . .
३ पाट . . . . . .(पाटलिपुत्त) ये केनपि संघे भेतवे ए चुं खो
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४ भिखू वा भिखुनि वा संघं भाखति से ओदातानि दुसानि संनंधापयिया आनावाससि
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५ आवासयिये हेवं इयं सासने
भिखु - संघसि च भिखुनि संघसि च विनपयितवे
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६ हेवं देवानंपिये आहा हेदिसा च इका लिपी तुफाकंतिकं हुवति संसलनसि निखिता
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७ इकं च लिपिं हेदिसमेव उपासकानंतिकं निखिपाथ ते पि च उपासका अनुपोसथं यावु
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८ एतमेव सासनं विस्वंसयितवे अनुपोसथं च धुवाये इकिके महामाते पोसथाये
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९ याति एतमेव सासनं विस्वंसयितवे आजानितवे च आवते च तुफाकं आहाले
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१० सवत विवासयाथ तुफे एतेन वियंजनेन हेमेव सवेसु कोट - विषवेसु एतेन
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११ वियंजनेन विवासापयाथा
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अनुवाद -
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देवानंपिये पियदसि लाजा हेवं आहा : . . . . . . पाट(लिपुत्र ) . . . . . . . . . . . .
कोई भी क्यों न हो -
वह संघ का भेद नहीं कर सकता ।
जो भी -
भिक्खु या भिक्खुणी ,
संघ का भेद करेगा, उसे श्वेत वस्त्र पहना कर विहार से बाहर अनावास - स्थान में रखा जाय । ☝
🔸इस प्रकार भिक्खुओं और भिक्खुणियों के संघों में यह आदेश विज्ञापित किया जाय ।
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हेवं देवानंपिये आहा :
🎯 (देवानंपिय ने इस प्रकार कहा) :
🔸ऐसा एक लेख आपके पास विहार के संसरण में रख दिया जाये और
🔸इसकी दूसरी प्रति उपासकों के पास रखी जाये ।
🔸वे उपासक उपोसथ के दिन आकर इस आदेश से परिचित हो जायेंगे ।
🔹प्रति उपोसथ के दिन निश्चित रूप से हर महामात उपोसथ के लिए जाएगा ताकि वह इस आदेश से परिचित हो और इसे पूरी तरह समझे
🔹जहॉ तक आपका अधिकार-क्षेत्र है,
आप सर्वत्र इसी आशय का आदेश भिजवाएँगे।
🔹इसी प्रकार सभी कोट नगरों में और जिलों में इसी आशय का आदेश भेज दें ।
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टिप्पण :
संघ-भेद को प्रतिबंधित करता यह लेख -
संभवत: यह लेख पाटलिपुत्र के महामात्रों को संबोधित है,
जैसे की कौशांबी का लेख वहाँ के महामात्रों को है;
लेकिन यह लेख सारनाथ के स्तंभ पर भी लिखा गया है ।
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