🌹वृहद-सिलालेख-02🌹
(चौदह चट्टान लेख-02)
( गिरनार )
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मूल-लेख (लिप्यांतरण):-
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१ सर्वत विजितम्हि देवानंप्रियस पियदसिनो
राञो
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२ एवमपि प्रचंतेसु यथा चोडा पाडा सतियपुतो
केतलपुतो मा तंबपंणि
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३ अंतियको योन - राजा ये वा पि तस
अंतियाकस सामीपा
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४ राजानो सर्वत्र देवानंप्रियस प्रियदसिनो राञो
द्वे चिकीछा कता
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५ मनुस-चिकीछा च पसु-चिकीछा च
ओसुढानि च यानि मानुसोपगानि च
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६ पसोपगानि च यत यत नास्ति सर्वत्रा
हारापितानि च रोपापितानि च
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७ मूलानि च फलानि च यत यत्र नास्ति सर्वत
हारापितानि च रोपापितानि च
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८ पंथेसू कूपा च खानापिता व्रछा च रोपापिता
परिभोगाय पसुमनुसानं
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अनुवाद :-
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देवानंप्रिय पियदसिनो राजा के राज्य में सभी जगह
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और जो सीमावर्ती राज्य हैं जैसे चोल, पांडय, सतिपुत्र, केरलपुत्र, ताम्रपर्णी, तक
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और यवनराज अंतियोक और जो अंतियोक के पड़ोसी राजा हैं
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उन सबके राज्यों तक देवानंप्रिय प्रियदसिन राजा ने दो प्रकार की चिकित्सा का प्रबंध किया है -
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मनुष्यों की चिकित्सा और पशुओं की चिकित्सा । औषधियां भी - मनुष्यों के उपयोग की
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और पशुओं के उपयोग की - जहां-जहां नहीं थी वहां-वहां मंगवायी गयीं और रोपवायीं गयी हैं ।
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(इसी प्रकार) मूल और फल भी जहां-जहां नहीं थे वहां-वहां सब जगह मंगवाये और रोपवाये गए हैं ।
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पंथेसू कूप व फलदार (भोजन-देनेवाले) वृक्ष पशु व मनुष्य के लिए रोपवाये गए हैं ।
- द्वितीय-वृहद-सिलालेख समाप्त -
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टिप्पण :-
1. सम्राट असोक के सिलालेख -
"लखु-सिलालेख" ,
"वृहद-सिलालेख" , व
"स्तंभ-लेख"
जम्बूदीप के भिन्न-भिन्न प्रांतो में व जम्बूदीप के बाहर के भिन्न-भिन्न प्रान्तों में भी प्राप्त होते हैं ।
अत: धम्म-लिपि की भाषा-शैली में परिवर्तित रूप देखने को मिलता है । जैसे -
कुछ क्षेत्रों में 'र' का प्रयोग होने लगा था व कुछ क्षेत्रों में 'र' का प्रयोग अभी प्रारंभ नही हुआ था।
इस कारण से हमारा प्रयास है कि सिलालेखों के क्रम में कोई परिवर्तन न करते हुए भिन्न-भिन्न प्रांतो से प्राप्त सिलालेख सम्मिलित किये जायें।
ताकि पाठक-गण भाषा के विकास क्रम से भी अवगत हो सके ।
2. सिलालेख में व्यक्त राजा 'अंतियोक' (सम्राट
सीरिया, 261-243 ई0पू0) है । विदेशों में
भेजे गये मिशनरी के विषय में विस्तार से
वृहद सिलालेख-13 व स्तंभ लेखों में आयेगा।
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