🌹वृहद-सिलालेख-11🌹
(चौदह चट्टान लेख-11)
( शाहबाजगढ़ी )
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मूल-लेख (लिप्यांतरण):-
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१ देवनंप्रियो प्रियद्रशि रय एवं हहति नस्ति एदिशं दनं यदिशं ध्रम-दन ध्रम-संस्तवे
ध्रम-संविहगो ध्रम-संबंध तत्र एतं दस-भटकनं संम्म-पटिपति मत-पितुषु सुश्रुष
मित्र-संस्तुत-ञतिकनं श्रमण-ब्रमणन
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२ दन प्रणन अनरंभो एतं वतवो पितुन पि पुत्रेन पि भ्रतुन पि स्पमिकेन पि मित्र-संस्तुतन अव प्रतिवेशियन इमं सधु इमं कटवो सो तथ करतं
इअलोक च अरधेति परत्र च अनतं पुञ प्रसवति
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३ तेन ध्रम - दनेन
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अनुवाद -
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देवनंप्रियो प्रियद्रशि राजा ऐसा कहता है -
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🌻 कोई ऐसा दान नहीं जैसा,
🌻 धम्म-का-दान है,
🌻 धम्म का परिचय, या
🌻 धम्म-का-संविभाग (बंटवारा),या
🌻 धम्म-का-रिश्ता ।
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🌹वह यह है -
🔸दास और सेवकों के साथ उचित व्यवहार,
🔸माता-पिता की सेवा,
🔸मित्रों, परिचितों, रिश्तेदारों,
🔸समण-बाम्हन सन्यासियों को दान,
🔸प्राणियों की हिंसा न करना ।
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🌹पिता, पुत्र (संतान), भाई, स्वामी, मित्र,
साथी या पड़ोसी सभी कहें -
🔸यह यह अच्छा है,
🔸इसे करना अच्छा है,
🔸इसे करना चाहिए ।
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🌹जो ऐसा करता है,
🔸वह इहलोक की सिद्धि करता है और
🔸धम्म-दान से अनन्त पुण्य का भागी होता
है ।
- ग्यारहवां-वृहद-सिलालेख समाप्त -
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टिप्पण : -
इस सिलालेख में 🌹धम्म-दान🌹को परिभाषित किया गया है ।
विस्तार के लिये देखें "सिगालोवाद-सुत्त" ।
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