🌹वृहद-सिलालेख-07🌹
(चौदह चट्टान लेख-07)
( शाहबाजगढ़ी )
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मूल-लेख (लिप्यांतरण):-
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१ देवनंप्रियो प्रियशि रज सवत्र इछति सव्रप्रषंद
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२ वसेयु सवे हि ते सयमे भव - शुधि च इछंति
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३ जनो चु उचवुच-छंदो उचवुच-रगो ते सव्रं व एक-देशं व
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४ पि कषंति विपुले पि चु दने यस नस्ति सयम भव-शुधि
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५ किट्रञत दृढ़ - भतित निचे पढम्
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अनुवाद :-
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🎯देवनंप्रियो प्रियशि राजा चाहता है कि,
🔹सभी जगह
🔹सभी संप्रदायों
🔹के लोग निवास करें ।
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🔸क्योंकि सभी संप्रदाय
🔸संयम और चित्त की शुद्धि चाहते हैं ।
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🌷परन्तु लोगों की प्रवृत्ति,
🔸रूचि भिन्न-भिन्न होती है ।
🔸अत: वे पूरी तरह या
🔸आंशिक रूप में पालन करें ।
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🔺किंतु जो बहुत अधिक दान नहीं कर
सकता,
🔸उस में संयम और चित्त की शुद्धि,
🔸कृतज्ञता और
🔸दृढ़भक्तिता का होना नितांत आवश्यक है, 🔸श्रेयस्कर है ।
- सातवॉ-वृहद-सिलालेख समाप्त -
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टिप्पण :-
सांप्रदायिक शौहार्द कायम करने के लिये महत्त्वपूर्ण राज-आज्ञा ।
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