🌹वृहद-सिलालेख-04🌹
(चौदह चट्टान लेख-04)
( गिरनार )
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मूल-लेख (लिप्यांतरण):-
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१ अतिकातं अंतरं बहूनि वास - सतानि वधितो एव प्राणारंभो विहिंसा च भूतानं ञातीसु
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२ असंप्रतिपती ब्राम्हण - स्रमणानं असंप्रतीपती त अज देवानंप्रियस प्रियदसिनो राञो
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३ धंम-चरणेन भेरी-घोसो अहो धंम-घोसो विमान-दर्सणा च हस्ति-दसणा च
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४ अगि - खंधानि च अञानि च दिव्यानि रूपानि दसयित्पा जनं यारिसे बहूहि वास-सतेहि
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५ न भूत - पुवे तारिसे अज वढिते देवानंप्रियस प्रियदसिनो राञो धंमानुसस्टिया अनारंभो
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६ प्राणानं अविहीसा भूतानं ञातीनं संपटिपती ब्रम्हण - समणानं संपटिपती मातरि पितरि
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७ सुस्रुसा थैर - सुस्रुसा एस अञे च बहुविधे
धंम - चरणे वढिते वढयिसति चेव देवानंप्रियो
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८ प्रियदसि राजा धंम - चरणं इदं पुत्रा च पोत्रा च प्रपोत्रा च देवानंप्रियस प्रियदसिनो राञो
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९ प्रवधयिसति इदं धंम - चरणं आव सवट-कपा धंमम्हि सीलम्हि तिस्टम्तो धंमं अनुसा-सिसंति
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१० एस हि सेस्टे कंमे य धंमानुसासनं धंम-चरणे पि न भवति असीलसा तइमम्हि अथम्हि
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११ वधी च अहीनी च साधु एताय अथाय इदं लेखापित इमस अथस वधि युजंतु हीनि च
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१२ नो लोचेतव्या द्-बादस - वासाभिसितेन देवानंप्रियेन प्रियदसिना राञा इदं लेखापितं
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अनुवाद :-
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अतीत काल में कई सौ वर्षों से पशुओं की बलि, जीवों की हिंसा और
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रिश्तेदारों, ब्राम्हणों और स्रमणों का अनादर बढता ही गया ।
पर आज, देवानंप्रियस प्रियदसि राजा
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के धम्माचरण से युद्ध के नगाड़े (भेरी) का शब्द युद्घ का आह्वान नहीं बल्कि धम्म का शब्द बन गया है ।
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देव विमान, हाथियों और अग्नि-खंध और अन्य दिव्य दृश्य (दिव्यानि रूपानि) लोगों को प्रदर्शित किये जाते हैं ।
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जैसा पहले सैकड़ों वर्षों से नहीं हुआ था वैसा आज देवानंप्रियो प्रियदसिनो राजा के 🔸धम्मानुशासन से,
🔸जीवों की रक्षा ,
🔸रिश्तेदारों का आदर ,
🔸ब्रम्हण और श्रमणों का आदर ,
🔸माता - पिता की सेवा तथा
🔸वृद्धजनों की सेवा बढ़ गई है ।
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🔸यह और अन्य बहुत प्रकार के धम्माचरण बढ़ गए हैं ।
🔸इस धम्माचरण को देवानंप्रियो प्रियदसि राजा और बढ़ाएगा ।
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देवानंप्रियों प्रियदर्शी राजा के पुत्र , पोते , परपोते भी इस धम्माचरण को कल्प के अंत तक बढ़ाते रहेंगे और धम्म और शील का पालन करते हुए ।
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धम्मानुशासन का प्रचार करेंगे , क्योंकि यह - यानी धम्मानुशासन - श्रेष्ठ कार्य है ।
यह धम्मानुशासन भी अच्छा है ।
इसकी वृद्धि करना नहीं इसकी हानि न होने देना अच्छा है ।
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यह इसीलिए लिखाया गया कि वे ( अशोक के उत्तराधिकारी ) इस बात की वृद्धि में लगें और इसकी हानि न होने दें ।
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राज्याभिषेक के बारह साल बाद देवानंप्रियो प्रियदर्शी राजा ने इसे लिखाया ।
- चौथा-वृहद-सिलालेख समाप्त -
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टिप्पण :-
विस्तार के लिये देखें,
🔸सिगालोवाद सुत्त (दीघनिकाय), व
🔸धम्मिक-सुत्त (सुत्तनिपात)
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