क्या घूर रहे हो ?
किं पिवसि दृष्टिभ्यां?
वक्ष मेरे ??
पीने मे?
लब मेरे ?
अधरं मे?
या कमर मेरी ?
अथवा कटिं मे?
इन्हें देख उत्तेजित हो रहे हो ?
एतान् दृष्ट्वा कामुको भवसि?
क्या मन कर रहा है ?
किं ईच्छसि?
मुझे दबोचने का ?
मां ग्रसितुम्?
नोचने-खखोरने का ??
नखछतयितुम्?
एक बात पूछती हूँ
प्रश्नमेकं पृच्छामि।
सच-सच बताना..
सत्यं-सत्यं वद
तुम्हारे घर में भी तो
तव गृहेsपि तु
खूबसूरत-सुडौल वक्षों की कई जोड़ियाँ होंगी ?
सुरम्य-सुदृढवक्षयोः नैकाः युग्माः विद्यन्ते?
क्या उन्हें भी ऐसे ही भूखे भेड़ियों की तरह घूरा करते हो?
किं तानपि एवमेव बुभुक्ष्वः भेड़ियानिव पश्यन्ति।
क्या उन्हें भी देख अपनी लार टपकाते हो?
किं तानपि पश्ययित्वा लोलुपो भवसि?
वासनाएँ चरम पर पहुँचती हैं तुम्हारी??
वासनाः ते चरमं प्राप्न्वन्ति?
आसानी से न मिल पाने पर हिंसक हो जाते हो???
अच्छा चलो जाने दो इस बात को ये बताओ जिस तरह
तुम अपनी आँखों से नग्न कर, बलात्कार करते हो मेरा
कोई और भी तो जरूर करता होगा तुम्हारी भी बहन का?
क्या हुआ?
क्रोध आ गया?
खून खौल गया??
इज़्ज़त पर आँच आ गई?
जैसे तुम्हारी बहन की
इक इज़्ज़त है मान-सम्मान, मर्यादा है।
मेरी भी तो है।
मैं तुम्हारी आखों में
अपने लिए प्रेम चाहती हूँ
सम्मान और मर्यादा चाहती हूँ
वासना नहीं
कोई हिंसा नहीं
निश्छल, निस्वार्थ प्रेम
मैं केवल और केवल
प्रेम चाहती हूँ ....
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