Friday, 25 October 2019

मज्झिम निकाय

🌹१४-चूलदुक्खक्खन्ध–सुत्त🌹
      🌹 मज्झिम निकाय ( १. २. ४ )🌹

💥ऐसा मैंने सुना--- एक समय भगवान् 'शाक्य' जनपद कपिलवस्तु के न्यग्रोधाराम में विहार करते थे।
तब 'महानाम' (अनुरूद्ध अरहत के बडे भाई व तथागत गोतम बुद्ध के चचेरे भाई) शाक्य जहाँ भगवान् थे, वहाँ आया। आकर भगवान् को अभिवादन कर एक ओर बैठ गया । एक ओर बैठे महानाम शाक्य ने भगवान से कहा--

♦“भन्ते ! बहुत समय से भगवान के उपदिष्ट धम्म को मैं इस प्रकार जानता हूँ -
लोभ चित्त का उप-किलेस (= मल ) है,
द्वेष चित्त का उप-किलेस है,
मोह चित्त का उप-किलेस है।
तो भी एक समय लोभ-वाले धम्म मेरे चित्त को चिपट रहते हैं। तब मुझे भन्ते ! ऐसा होता है—
'कौन सा धम्म (=बात ) मेरे भीतर (अज्झतं) से नहीं छूटा है, जिससे कि एक समय लोभ-धम्म मेरे चित्त को चिपट रहते हैं' ?”

🎯“महानाम ! वही धम्म तेरे भीतर से नहीं छूटा, जिससे कि एक समय लोभ-धम्म तेरे चित्त को चिपट रहते हैं।
महानाम ! यदि वह धम्म तेरे भीतर से छूटा हुआ होता, तो तु घर में वास न करता, कामोपभोग न करता ।
चूँकि महानाम ! वह धम्म तेरे भीतर से नहीं छूटा, इसलिये तु गृहस्थ है, कामोपभोग करता है।
( यह ) काम (भोग ) अ-प्रसन्न करने वाले,
बहुत दुःख देने वाले,
बहुत उपायास (= परेशानी ) देने वाले हैं।
इनमें आदिनव (=दुष्परिणाम ) बहुत हैं ।
महानाम ! जब अरियसावक यथार्थतः अच्छी प्रकार जानकर इसे देख लेता है, तो वह काम से अकुशल (= बुरे ) धम्मों से, अलग ही में प्रीति-सुख या उससे भी अधिक शांततर ( सुख को ) नहीं पाता, वह काम में । “लौटने वाला" होता है।"

🎯"महानाम ! अरियसावक को जब काम (-भोग ) अ-प्रसन्न करनेवाले, बहुत दुःख देनेवाले, बहुत परेशानी करनेवाले मालूम होते हैं; ‘इनमें आदिनव बहुत है' इसे महानाम !
जब अरियसावक यथार्थतः अच्छी प्रकार जानकर इसे देख लेता है, तो वह काम से अलग, अ-कुशल धम्मों से पृथक् ही, प्रीति सुख या उससे शांततर ( सुख ) पाता है, तब वह कामों की ओर ‘न-फिरनेवाला' होता है।

🎯"मुझे भी महानाम ! संबोधि ( प्राप्त करने) से पूर्व बुद्ध न हो, बोधिसत्त होते समय, यह अप्रसन्न करनेवाले, बहुत दुःखदायी, बहुत परेशानी करनेवाले काम ( होते थे ), तब ‘इनमें दुष्परिणाम बहुत है'—
यह ऐसा यथार्थतः अच्छी प्रकार जानकर मैंने देखा,
किंतु कामों से अलग,
अकुशल धम्मो से अलग,
प्रीति-सुख, या उनसे शांततर (सुख ) नहीं पा सका।
इसलिये मैंने उतने से कामों की ओर 'न लौटने वाला' (अपने को) नहीं जाना ।
जब महानाम ! काम अप्रसन्न कर बहु-दुःखद, बहु-आयासकर हैं। 'इनमें दुष्परिणाम बहुत है' यह ऐसा जानकर.......।
तो काम से, अकुशल धम्मों से अलग ही प्रीति-सुख ( तथा ) उससे भी शांत-तर (सुख) पाया; तब मैंने ( अपने को) काम की ओर 'न लौटनेवाला' जाना ।"

🎯"महानाम ! काम (भोग) का आस्वाद (=वाद ) क्या है?—
महानाम ! ये पांच कामगुण है°°° ।
कौन से पाँच ?
🔸(१) इष्ट, कांत, रुचिकर, प्रिय-रूप, काम-युक्त, (चित्त को) रञ्जित करनेवाला, चक्षु से विज्ञेय (=जानने योग्य ) रूप।
🔸(२) इष्ट, कान्त, रुचिकर, प्रिय-शब्द, कामयुक्त, (चित्त को) रञ्जित करने वाला, श्रोत्र-विज्ञेय शब्द ।
🔸(३) इष्ट, कान्त, रुचिकर, प्रिय-गंध, कामयुक्त, (चित्त को) रञ्जित करने वाली, घ्राण-विज्ञेय गंध ।
🔸(४) इष्ट, कान्त, रुचिकर, प्रिय-रस , कामयुक्त, (चित्त को) रञ्जित करने वाला, जिव्हा-विज्ञेय रस।
🔸(५) इष्ट, कान्त, रुचिकर, प्रिय-स्पर्श, कामयुक्त, (चित्त को) रञ्जित करने वाला, काय-विज्ञेय स्पर्श ।
महानाम ! ये पाँच काम-गुण हैं ।
महानाम ! इन पाँच काम गुणों के कारण जो सुख या सौमनस्स (=दिल की खुशी ) उत्पन्न होती है, यही कामों का आस्वाद है।"

🎯“महानाम ! काम (भोग) का आदिनव (= दुष्परिणाम ) क्या है?
महानाम ! कुल-पुत्त जिस किसी शिल्प से–
🔹1)चाहे मुद्रा से, या
🔹2)गणना से, या
🔹3) संख्या से, या
🔹4)कृषि से, या
🔹5)वाणिज्य से, या
🔹6)गोपालन से, या
🔹7)बाण-अस्त्र से, या
🔹8)राजाकी नौकरी (= राज-पोरिस )से, या 🔹9)किसी (अन्य ) शिल्प से,
शीत-उष्ण-पीड़ित,
डंस-मच्छर-हवा-धूप-सरीसृप (= साँप-विच्छु आदि) स्पर्श से उत्पीड़ित होता,
भूख प्यास से मरता, जीविका करता है।"

" महानाम! यह कामों का दुष्परिणाम है। इसी जन्म में (यह ) दुःखो का पुंज (= दुःख-स्कंध) काम-हेतु = काम-निदान, काम-अधिकरण (=°°°विषय ) कामों ही के कारण है।
महानाम ! उस कुल-पुत्त को यदि इस प्रकार उद्योग करते (=उत्थान) करते, मेहनत करते, वह भोग नहीं मिलते (तो) वह शोक करता है, दुखी होता है, चिल्लाता है, छाती पीटकर क्रंदन करता है, मूर्छित होता है:-
'हाय ! मेरा प्रयत्न व्यर्थ हुआ, मेरी मेहनत निष्फल हुई !!' महानाम ! यह भी काम का दुष्परिणाम°°°है,
इसी जन्म में दुःख-खंध°°°। "

" यदि महानाम !
उस कुलपुत्त को इस प्रकार उद्योग करते°°°
वह भोग मिलते हैं,
तो वह उन भोगों की रक्षा के विषय में दुःख=दौर्मनस्य झेलता है—
🔹'कहीं मेरे भोग को राजा न हर ले जायें,
🔹चोर न हर लेजायें,
🔹आग न ढाहे,
🔹पानी न बहाये,
🔹अ-प्रिय-दायाद न लेजायें'।
उसके इस प्रकार रक्षा गोपन करते उन भोग को 🔹राजा ले जाते हैं,
🔹चोर ले जाते हैं,
🔹आग ढाह ले जाती है,
🔹पानी बहा ले जाती है,
🔹अप्रिय-दायद ले जाते हैं ।
🔹वह शोक करता है °°°
-'जो भी मेरा था, वो भी मेरा नहीं है'।
महानाम ! यह भी कामों का दुष्परिणाम°°°।

🎯“और फिर महानाम !
कामों के हेतु=काम निदान,
कामों के झगड़े (=अधिकरण) से कामों के लिये,
🔹राजा भी राजाओं से झगड़ते हैं,
🔹क्षत्रिय लोग क्षत्रियों से झगड़ते हैं,
🔹ब्राह्मण ब्राह्मणों से झगड़ते हैं,
🔹गहपति (= वैश्य ) गहपतियों से झगड़ते हैं,
🔹माता पुत्र के साथ झगड़ती है,
🔹पुत्र भी माताके साथ झगड़ते हैं,
🔹पिता भी पुत्रके साथ झगड़ते हैं,
🔹पुत्र भी पिता के साथ झगड़ते हैं,
🔹भाई भाई के साथ झगड़ते हैं,
🔹भाई भगिनी के साथ झगड़ते हैं,
🔹भगिनी भाई के साथ झगड़ती हैं,
🔹मित्र मित्र के साथ झगड़ते हैं।
वह वहाँ कलह=विग्रह=विवाद करते,
🔺 एक दूसरे पर हाथों से भी आक्रमण करते हैं, 
🔺ढेलों से भी आक्रमण करते हैं,
🔺डंडो से भी आक्रमण करते हैं,
🔺शस्त्रों से भी आक्रमण करते हैं।
वह वहाँ मृत्यु को प्राप्त होते हैं,
या
मृत्यु-समान दुःख को ।
महानाम ! यह भी काम का दुष्परिणाम°°°है।"

🎯"और फिर महानाम !
कामों के हेतु=काम निदान,
कामों के झगड़े (=अधिकरण) से कामों के लिये,  
📌ढाल-तलवार ( = असि-चम्म) लेकर,
📌धनुष (= धनुष-कलाप = धनुष-लकड़ी) चढ़ाकर,
📌दोनों ओर से व्यूह रचे संग्राम में दौड़ते हैं।
📌वाणों के चलाये जाते में,
📌शक्तियों के फेंके जाते,
📌तलवारों की चमक में,
📌वह बाण से विद्ध होते हैं,
📌शक्तिर्यो से ताड़ित होते हैं,
📌तलवार से शिर-च्छिन्न होते हैं।
वहाँ मृत्युको प्राप्त होते हैं,
या
मृत्यु-समान दुःखको ।
यह भी महानाम !
कामोंका दुष्परिणाम°°° है।"

🎯“और फिर महानाम !
कामों के हेतु,
तलवार लेकर;
धनुष चढ़ाकर,
भीगे-छिपे हुये प्राकारों (= उपकारी = शहर-पनाह ) को दौड़ते हैं।
बाणों के चलाये जाने में°°°।
वह वहाँ मृत्यु को प्राप्त होते हैं°°°।
यह भी महानाम !
कामों का दुष्परिणाम°°°।

🎯"और फिर महानाम !
कामों के हेतु=काम निदान,
कामों के झगड़े (=अधिकरण) से कामों के लिये,
🔺सेंध भी लगाते हैं,
🔺(गाँव) उजाड़ कर ले जाते है। |
🔺 चोरी(= एकागारिक = एक घरको घेरकर चुराना ) भी करते हैं,
🔺रहज़नी (= परिपन्थ ) भी करते है,
🔺पर स्त्री गमन भी करते हैं। 
तब उसको राजा लोग पकड़ कर नाना प्रकारकी सजा (=कम्म करण ) कराते है–
🔻चाबुकसे पिटवाते हैं,
🔻बेंतसे भी°°°;
🔻जुर्माना करते हैं,
🔻हाथ भी काटते हैं,
🔻पैर भी काटते हैं,
🔻हाथ पैर भी काटते हैं।
🔻कान भी काटते हैं।
🔻नाक भी काटते हैं।
🔻कान-नाक भी काटते हैं।
🔻'विलंगथालिक भी करते हैं,
🔻शंख- मूर्धिका भी करते हैं,
🔻राहुमुख भी करते हैं,
🔻ज्योतिमालिका भी करते हैं,
🔻हस्त-प्रज्योतिका भी करते हैं,
🔻एरक-वर्तिका भी करते हैं,
🔻चीरक-वासिका भी करते हैं,
🔻ऐणेयक भी करते हैं,
🔻बढिश-मांसिका भी करते हैं,
🔻कार्षापणक भी करते हैं,
🔻खारापनच्छिक भी करते हैं,
🔻परिध-परिवर्तिक भी करते हैं,
🔻पलाल-पीठक भी करते हैं,
🔻तपाये तेल में भी नहलाते हैं,
🔻कुत्तो से भी कटवाते हैं,
🔻जीते जी शूली पर चढ़वाते हैं,
🔻तलवार से शीश कटवाते हैं।
वह यहाँ वहाँ मरण को प्राप्त होते हैं,
या
मरण-समान दु:खों को भी।
यह भी महानाम !
कामों का दुष्परिणाम°°°हैं।"
🎯
“और फिर महानाम !
कामों के हेतु=काम निदान,
कामों के झगड़े (=अधिकरण) से कामों के लिये,
काया से दुश्चरित (=पाप) करते हैं,
वचन से दुश्चरित (=पाप) करते हैं,
मन से दुश्चरित (=पाप) करते हैं,
वह वह काय°°° वचन°°°मन से दुश्चरित कर के, शरीर छोड़ने पर मरने के बाद,
अपाय=दुर्गति=विनिपात, निरय (नर्क) में उत्पन्न होते ।"
🎯
महानाम !
जन्मान्तर में यह कामों का दुष्परिणाम दुःख-पुंज काम-हेतु=काम-निदान, कामों का झगड़ा कामों ही के लिये होता है ।

🎯 एक समय महानाम ! मैं राजगह में गृध्रकूट पर्वत पर विहार करता था। उस समय बहुत से निगंठ (=जैन-साधु) ऋषिगिरि की काल-शिला पर खड़े रहने (का व्रत) ले, आसन छोड़, उपक्रम करते, दुःख, कटु, तीव्र, वेदना झेल रहे थे। तब मैं महानाम ! सायंकाल ध्यान से उठकर, जहाँ ऋषिगिरि के पास काल-शिखा हैं। जहाँ पर कि वे निगंठ थे; वहाँ गया। जाकर उन निगंठों से बोला-
'आवुस! निगंठो! तुम खड़े क्यों हो, आसन छाड़े, उपक्रम करते, दु:ख, कटुक, तीव्र वेदना झेल रहे हो ?'

"ऐसा कहने पर उन निगंठो ने कहा-
'आबुस ! निगंठ नाथपुत्त (=जैन-तीर्थंकर-महावीर) सर्वज्ञ=सर्वदर्शी,
आप अखिल (=अपरिशेष) ज्ञान-दर्शन को जानते हैं-
'चलने, खड़े, सोते, जागते, सदा निरंतर (उनको) ज्ञान = दर्शन उपस्थित रहता है ।"
वह ऐसा कहते हैं-
‘निगंठो ! जो तुम्हारा पहले का किया हुआ कर्म है,
उसे इस कड़वी दुष्कर-क्रिया (= तपस्या ) से नाश करो
और
जो इस वक्त यहाँ काय-वचन-मन से संवृत (=पाप न करने के कारण रक्षित गुप्त ) हो,
वह भविष्य के लिये पाप का न करना हुआ । इस प्रकार पुराने कर्मों का तपस्या से अन्त होने से,
और
नये कर्मो के न करन से,
भविष्य मे चित्त अन्-आस्रव (=निर्मल) होगा। भविष्य में आस्रव न होने से,
कर्म का क्षय ( होगा ),
कर्म-क्षय से दुःख का क्षय;
दुःख-क्षय से वेदना (= झेलना ) का क्षय,
वेदना-क्षय से सभी दुःख-नष्ट होंगे।
हमें यह ( विचार ) रुचता है = खमता है,
इससे हम संतुष्ट हैं।' "

🎯" ऐसा कहने पर मैंने महानाम ! उन निगंठो से कहा--
‘क्या तुम आवुस ! निगंठो ! जानते हो हम पहले से ही हम नहीं न थे ?'
♦'नहीं आवुस !'
🎯‘क्या तुम आवुस ! निगंठो ! यह जानते हो-हमने पूर्व में पापकर्म किये ही हैं, नहीं किये है?’
♦‘नहीं आवुस !'
🎯'क्या तुम आवुस ! निगंठो ! यह जानते हो—अमुक-अमुक पाप कर्म किये हैं ?’
♦‘नहीं आवुस !'
🎯'क्या तुम आवस ! निगंठो ! जानते हो.
इतना दुःख नाश हो गया,
इतना दुःख नाश करना है,
इतना दु:ख नाश होनेपर सब दुःख नाश हो जायगा ?'
♦'नहीं आवुस !' "

🎯“क्या तुम आवुस ! निगंठो ! जानते हो—इसी जन्म में अकुशल (= बुरे ) धर्मों का प्रहाण (= विनाश), और कुशल (= अच्छे) धर्मों का लाभ ( होना है) ?"

♦‘नही आयुस !'

🎯 ‘इस प्रकार°°° निगंठो !
तुम नहीं जानते-हम पहले थे, या नहीं°°°।
इसी जन्म में अकुशल धर्मों का प्रहाण, और
कुशल धर्मों का लाभ ( होना है )।
ऐसा ही होने (ही ) से तो आवुस ! निगंठो !
जो लोक में रुद्र (=भयंकर)
खून-रंगे हाथवाले,
क्रूर-कर्मा,
मनुष्यों में नीच जातिवाले (=पञ्चाजात ) हैं, वह निगंठों में साधु बनते हैं।"

♦'आवुस! गौतम! सुख से सुख प्राप्य नहीं है, दु:ख से सुख प्राप्य है ।'
'आवुस ! गौतम ! यदि सुख से सुख प्राप्त होता, तो राजा मागध श्रेणिक विम्बसार सुख प्राप्त करता ।'
👆
' राजा मागध श्रेणिक बिम्बसार आयुष्मान् (=आप) से बहुत सुख-विहारी है।'
🎯
'आयुष्मान् निगंठों ने अवश्य, बिना विचारे जल्दी में यह बात कही।'
'आवुस ! गौतम !
सुख से सुख नहीं प्राप्य है, दुःख से सुख प्राप्य है।'
"सुख से यदि, आवुस ! गौतम ! सुख प्राप्त होता, तो राजा मागध श्रेणिक बिम्बसार सुख प्राप्त करता।"

🎯राजा मागध श्रेणिक बिम्बसार आयुष्मान् गौतम से बहुत सुख-विहारी है। (आप लोगों को) तों मुझे ही पूछना चाहिये-आयुष्मान के लिये कौन अधिक सुख विहारी है,
राजा°°° बिंबसार
या
आयुष्मान् गौतम ?”

♦“अवश्य आवुस ! गौतम ! हमने बिना विचारे जल्दी में बात कही। नहीं आवुस ! गौतम !
सुख से सुख प्राप्य है।"

♦जाने दीजिये इसे,
अब हम आयुष्मान् गौतम से पूछते हैं—
आयुष्मान के लिये कौन अधिक सुख-विहारी है,
राजा°°° बिंबसार या आयुष्मान् गौतम ?"

🎯‘तो आवुस ! निगंठो ! तुम को ही पूछते हैं,
जैसा तुम्हें जँचे, वैसा उत्तर दो।
तो क्या मानते हो आवुस ! निगंठो !
क्या राजा’°°°बिंबसार
काया से बिना हिले,
वचन से विना बोले,
सात रात-दिन केवल (=एकान्त) सुख अनुभव करते विहार कर सकता है ?’

♦‘नहीं आवुस !'

🎯'तो क्या जानते हो आवुस ! निगंठो !
क्या राजा’°°°बिंबसार
काया से बिना हिले,
वचन से विना बोले,
छः रात-दिन केवल सुख अनुभव करते विहार कर सकता है ?’

♦‘नहीं आवुस !'

'°°°पाँच रात-दिन°°°'
'°°°चार रात-दिन°°°।'
'°°°तीन रात-दिन°°°।'
‘°°°दो रात-दिन°°°।'
'°°°एक रात-दिन°°°?’

♦‘नहीं आवुस !’

🎯‘आवुस ! निगंठो ! मैं काया से बिना हिले, वचन से बिना बोले,  एक रात-दिन°°°', दो रात-दिन°°°'; तीन रात-दिन°°°, चार°°°, पाँच°°°°, छः°°° "सात रात-दिन केवल सुख अनुभव करता विहार कर सकता हूँ।
तो क्या जानते हो आबुस ! निगंठो !
ऐसा होने पर कौन अधिक सुख विहारी है। राजा मागध श्रेणिक बिम्बसार, या मैं ?’

♦‘ऐसा होने पर तो राजा मागध श्रेणिक बिंबसार से आयुष्मान् गौतम ही अधिक सुख-विहारी हैं।'

🎯भगवान ने, यह कहा, महानाम शाक्य ने सन्तुष्ट हो भगवान् के भाषण का अभिनन्दन किया

  मज्झिम निकाय
१४-चूलदुक्खक्खन्ध–सुत्त ( १. २. ४ )

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     🌹अंतिम साक्य राजा महानाम 🌹

                       🎯तथागत गोतम बुद्ध द्वारा अपने चचेरे भाई साक्य उपासक महानाम को कपिलवस्तु में कहे गये बहुत से सुत्त तिपिटक के भिन्न भिन्न निकायों में प्राप्त होते हैं,जैसेकि, मज्झिम निकाय, संयुक्त निकाय, अंगुत्तर निकाय आदि में |

               🔅इन साक्य उपासक महानाम का पंचवग्गिय-भिक्खुयों में से एक भिक्खु महानाम से कोई संबंध नही है |

🔶भिक्खु महानाम व साक्य उपासक महानाम दो अलग अलग पुद्गल हैं |

            👑साक्य उपासक महानाम, भिक्खु अनिरूद्ध के बडे भाई थे व राजा सुद्धोदन कि मृत्यु के उपरांत कपिलवत्थु के राजा चुने गए
थे |

🎯जब कोसल नरेश राजा प्रसेनजीत के पुत्त विडुढब ने (पिता प्रसेनजीत कि मृत्यु  उपरांत, कोसल नरेश बनने पर) कपिलवत्थु पर साक्यों का नामो-निसान मिटाने के लिये आक्रमण किया उस समय यही साक्य उपासक महानाम कपिलवत्थु पर राजा के रूप में शासन कर रहे थे |

🎯विडुढब के नाना भी यही महानाम थे | आक्रमण व साक्यों के नरसंहार को रोकने के लिए तालाब में डुबकी लगा कर अपने प्राणों कि आहुति देनेवाले भी यही महानाम थे |
यानी कह सकते हैं कि साक्यों के अंतिम राजा यही महानाम थे |

📌विडुढब का जन्म कपिलवस्तु के साक्य राजा महानाम कि दासी की पुत्री व कोसल राजा प्रसेनजीत कि अग्रमहिसी के विवाह से हुआ था | राजा प्रसेनजीत चाहते थे कि उनका शादी संबन्ध साक्यों के साथ हो जाए, इस कारण राजा प्रसेनजीत ने अपनी शादी साक्य पुत्री से करने का प्रस्ताव राजा महानाम को भेजा था, लेकिन साक्य अपने जातीय अभिमान में चूर होकर राजा महानाम कि पुत्री के स्थान पर महानाम कि दासी-पुत्री से करा दिया था और बताया गया था कि यह शादी महानाम कि पुत्री से कि गई है | जब भेद खुला तो राजा प्रसेनजीत ने दासी-पुत्री व उसके पुत्र विडुढब दोनो को कैद करवा दिया था | लेकिन तथागत गोतम बुद्ध के हस्तक्षेप से राजा प्रसेनजीत ने मॉ बेटा दोनो को कैद से रिहा करके पुन: सम्मान बहाल कर दिया था | लेकिन विडुढब इस अपमान को भुला न सका था, इस कारण उसने अपने पिता कि हत्या का चक्रव्यूह रचकर, राजा प्रसेनजीत कि मृत्यु होने पर कोसल का राजा बन कर साक्यों का नामो-निसान मिटा दिया ।

                      💐अट्ठकथा💐

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महानाम का स्तुप, बीस अन्य साक्य योद्धाओं के साथ सागरह्वा, नेपाल मे एक बडे तालाब के किनारे से पुरातत्व उत्खनन विभाग को प्राप्त हो चुके हैं | इन स्तुपों में अस्थि-अवशेष के साथ ही योद्धाओं द्वारा प्रयोग में लाये गये शस्त्र भी प्राप्त हुए हैं| अस्थि-कलसों पर योद्धाओं के नाम ब्राह्मी लिपि में लिखे हैं | यह लिपि सम्राट असोक के पूर्व कि है | भारत में प्राप्त सबसे प्राचीन लिपियों में से एक है |

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