Friday, 25 October 2019

शाहबाज गढी 1

🌹वृदह-सिलालेख-01🌹
                (चौदह चट्टान लेख-01)
                  ( शाहबाजगढ़ी )

🌹
मूल-लेख (लिप्यांतरण):-

१ [ अय ] ध्रम - दिपि देवनप्रिअस रञो लिखपितु
हिद नो किचि जिवे अरभितु परयुहोतवे नो पि चा समज कटव बहुक हि दोष समयस्पि देवणप्रिये प्रिअद्रशि रया दखति

२ अस्ति पि चु एकतिअ समये ससु - मते
देवनपिअस प्रिअद्रशिस रञो पुर महनससि देवनप्रिअस प्रियदशिस रञो अनुदिवसो बहुनि प्रण-शत-सहसनि अरभियिसु सुपठये सो इदनि यद अय

३ ध्रम - दिपि लिखित तद त्रयो वो प्रण हंञंंति मजुर दुवि २ म्रुगो १ सो पि म्रु गो नो ध्रुवं एत पि प्रण त्रयो पच नो अरभिशंति

-                    -                   -                 -
🌹
अनुवाद :-

यह धर्मलिपि देवनप्रिय राजा ने लिखवाई है ।
हिद (यहॉ=पाटलिपुत्त) किसी जीव का न वध किया और न बलि दी जाये।
न कोई समज (=समज्ज-अभिचरण) किया जाये क्योंकि देवनप्रिय प्रियदर्शी राजा समज में बहुत से दोष
(छ: दोष, देखे सिगालोवाद सुत्त - दीघनिकाय) देखता है ।
किन्तु एक प्रकार का समज है जिसे देवनप्रिय प्रियदर्शी राजा साधु (अच्छा) मानता है ।

पहले देवनप्रिय प्रियदर्शी राजा की रसोई (महान) में प्रतिदिन सैकड़ों सहस्र प्राणियों की शोरबा बनाने के लिये हत्या होती थी ।

पर इस समय जब यह धर्मलिपि लिखाई जा रही है सिर्फ तीन प्राणियों का वध होता है - दो मोर और एक मृग, और मृग का वध निश्चित नहीं है।
ये तीनों प्राणी भी भविष्य में नहीं मारे जाऐंगे ।

         - प्रथम-वृहद-सिलालेख समाप्त -

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

🌹
टिप्पण :
समस्त 14-वृहद-सिलालेखों, दोनों-लघु-सिलालेखों में, सातों-स्तंभ-सिलालेखों में सिगालोवाद-सुत्त (दीघनिकाय),
महानाम-सुत्त (अंगुत्तर-निकाय),
का प्रभाव प्रत्यक्ष देखा जा सकता है ।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

No comments:

Post a Comment