जो लोग वास्तव में भारत का विकास चाहते हैं,
लेकिन दीप-दानोत्सव का बहिष्कार कर रहे हैं,
उनके लिए -
दो शब्द
👇👇👇
🌹परिष्कार चुनो
बहिष्कार नहीं🌹
जिन्हे बदलना है उनका बहिष्कार उचित नहीं। इतिहास की समझ फैलानी होगी।
...........
🔸हमारा मगध साम्राज्य नष्ट किया गया हम चुप रहे।
🔸बुद्ध और अशोक की शान्ति की नीति को दोष दिया गया ।
🔸सारनाथ को अपना बना लिया ।
🔸मथुरा,अयोध्या, नागपुर,कन्नौज सबको खोदकर देखो हमारे थे ।
🔸बुद्ध के ऊपर क्या- क्या नहीं लपेटा -
- काली धोती पहनाकर माता बना दिया। 🔸गाय को छीन कर लड़ाई का मुद्दा बना लिया।
🔸अशोक के अभिलेखों को लिंग बता दिया। 🔸पीपल के बुद्ध को पीपल का भूत बना दिया।
🔸बुद्ध के स्वागत उत्सव को छीन लिया।
🔸विहारों को तोड़ डाला।
🔸नालंदा जैसे विश्व विद्यालय खत्म कर दिये गये।
🔸अशोक के कार्यों को भुला दिया ।
🎯 लोगों को हर त्योहार पर पंचशील के
उल्लंघन की छूट लोगों को भाने लगी।🎯
🎯अनपढ़ समाज को -
🔹दया,
🔹अहसान,
🔹कृपा,
🔹झूठन,
🔹कर्ज भेजने लगे ।
🎯 🔰 🎯
🔸दीप,
🔸पुष्प,
🔸पीला रंग,
🔸सुगंध सबको अपनाकर
🔹वर्ण-व्यवस्था🔹को मजबूत करने में लगा
दिया।
🎯
🔸आज भी -
🔺इतिहास की समझ और इतिहासकारों,
🔺 साहित्यकारों,
🔺सामाजिक कार्यकर्ताओं
🔺को बिना समझे भड़कना कहाँ तक उचित
है।
🌹दो दशक पहले तक,
🔹कट्टर अंबेडकरवादी -
🔸रविदास जयंती और
🔸वाल्मीकि जयंती में नहीं जाते थे ।
❤ जिसके कारण दोनों के मंचों पर
जातिवादी लोग आकर गुरू रविदास जी
और महर्षि वाल्मीकि के मानने वालों को
अंबेडकरवाद से दूर करने का काम करते
थे।
❤
और यह पहल और निर्णय सफल हुआ -
🔺जब अंबेडकरवादी दोनों मंचों पर पहुंचे तो
रविदास जी और महर्षि वाल्मीकि के मानने
वालों ने अंबेडकरवाद को समझा ।
जिन्हे बदलना है -
🙏 उनका बहिष्कार नहीं कर सकते ।
🙏 परिष्कार को चुनो, सोधन करो ।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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