🌹कलिंग चट्टान लेख - 2🌹
( जौगड़ )
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मूल-पाठ (लिप्यांतरण) :-
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१ देवानंपिये हेवं आह
समापायं महमता लाज - वचनिका वतविया अं
किछि दखामि हकं तं इछामि हकं किंति कं
कमन
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२ पटिपातयेह दुवालते च आलभेहं एस च मे
मोखिय - मतादुवाला एतस अथस अं तुफेसु
अनुसथि
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३ सव - मुनि - सा मे पजा
अथ पजाये इछामि किंति मे सवेणा हित-सुखेन
युजेयू अथ पजाये इछामि किंति मे सवेन हित-
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४ सुखेन युजेयू ति हिदलोगिक - पाललोकिकेण
हेवं मेव मे इछ सवमुनिसेसु
सिया अंतानं अविजिता
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५ -नं किं - छांदे सु लाजा अफेसू ति एताका वा
मे इछ अंतेसु पापुनेयु लाजा हेवं
इछाति अनुविगिन ह्वेयू
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६ ममियाये अस्वसेयु च मे सुखंमेवा च लहे यूममते नोखं हेवं च पापुनेयु खमिसति ने लाजा
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७ ए साकिये खमितवे ममं निमितं च धंमं चलेयू
ति हिदलोगां च पललोगं च आलाधयेयू एताये ☝
८ च अठाये हकं तुफेनि अनुसासामि अनने एत
केन हकं तुफेनि अनुसासितु छंदं च वेदि-
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९ तु आ मम धिति पतिना च अचल स हेवं कटू
कंमे चलितविये अस्वासनिया च ते एन ते पापुने ☝
१० यु अथा पित हेवं ने लाजा ति अथ अतानं
अनुकंपति हेवं अफेनि अनुकंपति अथा पजा
हेवं
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११ मये लाजिने तुफेनि हकं अनुसासित छांदं
च वेदित आ मम धिति पटिंना चा अचल सकल
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१२ देसा - आयुतिके होसामी एतसि अथसि अलं हि तुफे अस्वासनाये हित - सुखाये च तेसं
हिद -
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१३ लोगिक - पाललोकिकाये हेवं च कलंतं स्वगं च आलाधयिसथ मम च आननेयं एसाथ
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१४ एताये च अथाये इयं लिपी लिखित हिद एन
महामाता सास्वतं समं युजेयू अस्वासनाये च
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१५ धंम - चलनाये च अंतान इयं च लिपी अनुचा तुंमासं सोतविया तिसेन अंतला पि च सोतविया
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१६ खने संतं एकेन पि सोतविया हेवं च कलंतं चघथ संपटिपातयितवे
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अनुवाद :-
देवानंपिये ने इस प्रकार कहाः
राजा के संदेश पाने के योग्य समापा के महामाता से इस प्रकार कहना :
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जो कुछ में ( उचित ) समझता हूं उसके अनुसार काम करने की और उचित उपायों से उसे पूरा करने की मेरी इच्छा होती है ।
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और इस उद्देश्य की पूर्ति का मुख्य उपाय मैं यह मानता हूँ कि मैं आप लोगों को अनुदेश दू ।
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सभी मनुष्य मेरी प्रजा ( संततियां ) है ।
जिस तरह मैं चाहता हूँ कि मेरे बच्चे इस लोक में और परलोक में सभी तरह के हित और सुख प्राप्त करें उसी तरह सभी मनुष्यों के बारे में मेरी इच्छा है ।
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जो सीमांत जातियां अभी तक नहीं जीती गई है वे कदाचित यह जानना चाहें कि हम लोगों के प्रति राजा की क्या आज्ञा है ।
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सीमांत जातियों के प्रति मेरी यही इच्छा है कि वे जानें कि राजा यही चाहता है कि,
वे मुझ से न डरें ,
मुझ पर विश्वास करें ,
मुझ से सुख ही प्राप्त करें ,
कभी दुःख न पावें ।
वे यह भी जान लें कि जहां तक क्षमा का व्यवहार हो सकता है ,
राजा उन लोगों के साथ क्षमा का बर्ताव करेंगे । मैं उन्हें धम्म का आचरण करने को कहूंगा
( और कि ) उनका इहलोक और परलोक दोनों बनेगा ।
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इसी निमित्त मैं आप लोगों को अनुदेश देता हूँ कि इससे ( प्राणियों का ) मुझ पर जो ॠण है उससे उॠण हो सकू ।
और आप लोगों को अनुशासन देता हूँ ,
सूचित करता हूँ कि मेरा यह निश्चय अटल और प्रतिज्ञा दृढ़ है ।
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इस प्रकार आचरण करते हुए आप लोग अपने कर्तव्यों का पालन करें और उनमें भरोसा पैदा करें कि जिससे वे समझे,
" कि देवानपिये राजा हमारे लिए वैसे ही है जैसे कि पिता ,
उन्हें हमसे वैसा ही प्रेम है जैसा कि अपने से और हम लोग राजा के वैसे ही हैं जैसे कि उनके लड़के ।"
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आप लोगों को अनुशासन देकर और अपना अटल निश्चय और दृढ़ प्रतिज्ञा सूचित कर मैं सारे देश में इस उद्देश्य से अधिकारी नियुक्त करूंगा ।
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आप लोगों में सीमांत जातियों के विश्वास और इहलोक और परलोक में उनके हित और सुख पैदा कराने की क्षमता है ।
इस प्रकार करते हुए आप स्वर्ग को प्राप्ति कर सकते हैं और मेरा आप लोगों पर जो ऋण है उससे उऋण हो सकते हैं ।
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यह लेख इस उद्देश्य से लिखा गया कि महामात लोग सीमांत जातियों में विश्वास पैदा करने के लिए और उन्हें धम्म मार्ग पर चलाने के लिए निरंतर प्रयत्न करें ।
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इस लेख को प्रति चातुर्मास अर्थात हर चार मास पर तिष्य नक्षत्र के दिन सुनना चाहिए, बीच बीच में भी सुनना चाहिए और सुभ दिनों पर अकेले भी सुनना चाहिए ।
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इस प्रकार करते हुए पूरा करने का यत्न करें ।
-द्वितीय-सिला-लेख-कलिंग-समाप्त-
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